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Tuesday 7 February 2012

अत्रिजीव नाडी वाचक मुत्थु सेल्वा कुमारन से प्रश्न कांडम पर चर्चा


  
अत्रिजीव नाडी वाचक मुत्थु सेल्वा कुमारन
अत्रिजीव नाडी वाचक मुत्थु सेल्वा कुमारन से वेब-कॉम्प्युटर पर किए संभाषण द्वारा १४ दिसंबर२०१० के उत्तरों का सारांश। १ से ४ तक के प्रश्न सेल्वाजी के थे। उनके कहनेपर मैंने पुछे थे। पांचवा प्रश्न तथा अंत में की गई प्रार्थना मेरी याने शशिकांत ओक की तरफ़ से थी।
पश्न पहला - आपके भविष्य कथन में कोई ज्योतिषशास्त्र के गणित या सुत्रों की चर्चा या उल्लेख नही होता, फिर ये जीव नाडी के कथन किस प्रकार से लिखे गए? (अंक बताया था ४१)
उत्तर उस दिन का संदर्भ देकर नाडी महर्षी उत्तर देने की शुरवात करते है। अत्री उवाच आज विकृती वरुषम (सन २०१०-२०११)के कार्तिक मासम (१५ नोहेंबर से १५ दिसंबर तक) की तमिल तिथि २८ (तारीख १४ दिसंबर २०१०)अर्थात नवमी, मंगलवार है । अब के समय उत्तराभाद्रपदा नक्षत्र के दिन चंद्र मीन राशी में है। तथा प्रश्न का लग्न सिंह राशि का होगा। (बाद में तमिल पंचाग से इस ग्रहकालगति की सत्यता १०० प्रतिशत सही पाई गई। जो इस प्रकार थी। मेष लग्न में छटे स्थान में शनि, सातवे में रवि-बुध, आठवे में शुक्र, मंगल तथा राहू नवम घर में, गुरू-चंद्र दसवे में, तथा केतु तिसरे घर में उपस्थित होंगे।)
आगे महर्षी कहते है, यह मात्र कहनेवाली बात है कि हम महर्षी लोग जीवनाडी कथन कराते है परंतु सत्यता यह है कि स्वयं भगवान शिवशंकरही इसे लिखते तथा बोलने की प्रेरणा है। जिन्हे आदि-अंत का ज्ञान हो अर्थात त्रिकालज्ञान हो वे ही ऐसे कथन करने की क्षमता रखते है।
कथन सुत्र में होते है। बिना सुत्र का इस ब्रह्मांड में कुछ भी नही। सब गणित पंचमहाभूत, २७ नक्षत्र, ९ ग्रहगोल तथा १२ राशियों से एक दूसरों से जुडे है। समय की गणना अनादि है। समय तो एक ही है। मानवी जीवन को आधार देने के लिए समय को टुकडों में बांट कर साल, मास, दिन, आदि की रचना हुई। आगे सुक्ष्मातिसुक्ष्म भी भाग - जैसे एक ही लग्न के ३०० भाग बने। उसके फिर १५० उपविभाग या अंश कर नाडी के अंश बनाए गए। तात्पर्य रचनाएं सुत्रबद्ध है। इस के आगे की बात गुप्त रखना ही हित में है।
प्रश्न दुसरा हे श्रद्धेय महर्षी अत्री, आप के आदेश के अनुसार मैंने जप साधना शुरू की तथा माता सरस्वती की तथा दत्तात्रय के जन्मदिन पर साधना गुरु के दरबार में जा कर की । क्या सब आपके निर्देश के अनुसार था या कोई त्रुटियां रही? अगर गलतियाँ रही हों तो उसे ठिक करने के लिए क्या करना प़डेगा? (अंक था - १९)
उत्तर प्रश्न का लग्न है तुला। कोई त्रुटी नही रही। ना आपने जो महर्षींयों की सेवा की उसमें कोई कमी नही आय़ी है। मानव हो तो गलतियां होती है, गलतियों को सुधारने के लिए दंड भी करता रहता हूँ।
प्रश्न तिसरा- नाडी वाचक दुसरों को जीवनाडी का पठन करने की दीक्षा दे सकते है? यदि हो तो क्या तरीका है? (अंक बताया था ६३)
उत्तर मिथुन लग्न मे पुछा गया प्रश्न है। जीव नाडी कथन पढाने का कोई तरीका नही । भगवान शिवही तय करते है कि उसे कौन पठन करेगा । उसे वो कला आपने आप आएगी । इस के लिए गुरु की, प्रॅक्टीस या पैरची(नाडीपट्टी में आया तमिल शब्द) की जरूरत नाहीं। इसे वय का, लिंग का तथा संन्यासी होने का बंधन नही । फिर भी यह कहूं कि ब्रह्मर्षी का आशीर्वाद हो तथा जिसकी कुंडली में अध्यात्म योग हो तो उसे पठने में कठिनाई नही होती। यह शक्ति कभी भी मिल सकती है। संक्षिप्त में, जैसे भगवान शिवशंकर की इच्छा हो तो वे व्यक्ति का चयन करते है।
प्रश्न चौथा। पैसे की कमी के कारण जीव नाडी में बताए गए परिहार का पालन करना संभव नही होता ऐसे में क्या करे? (अंक ८३ बताया था)
उत्तर धनुलग्न मे पुछे गये प्रश्न का उत्तर देने से पहले नाडी शास्त्री सेल्वा मुत्थु कुमारन कहते है कि अत्रि महर्षी गरम हो कर कहते है। जिसके लिए परिहार के विधी बताए जाते है उसकी परिस्थिती के हिसाब से ही उसे मार्गदर्शन किया जाता है। इस तरह का प्रश्न गलत है। पढने वाला या अन्य भाषा में कथन कर समझाने वाला अगर गलती करे तो क्या करे? यदि जादा पैसे का लालच हो जाए तो उसे ठीक प्रायश्चित्त या दंड मिलता है। उसकी चिंता जातक को नही करनी चाहिए।
प्रश्न पांचवा प्रश्न पूछनेपर आप प्रश्न का लग्न बताते है, उसका कारण तथा गणित क्या है? (अंक बताया था ७१)
उत्तर प्रश्न कुंभ लग्न में पुछा गया था। प्रश्न गलत नही, अतः जानकारी देकर संतुष्ट करता हूँ। प्रश्न पुछनेपर ही आप अंक बताते हो। पर असल में आप क्या अंक कहने वाले हो यह भी तय है। इसलिए आपके उत्तर देने की एक कुंडली बनती हे जिस में प्रश्न का लग्न तयार होता है। सीधे साधे शब्दों में कहा जाए तो जो अंक आप १ से १०८ तक बताते हो वह १२ राशियों तथा ९ ग्रहों के गुणाकार से बनता है। जैसे अभी आपने ७१ कहा तो १२गुना ५ बने ६० शेष बचे ११ तो प्रश्न की लग्न होता है कुंभ। अबतक की संख्या का अध्ययन आप करे तो यह बात उभरकर आएगी। जैसे पहले प्रश्न की ४१ संख्या का लग्न था सिंह।( १२*=शेष ५, सिंह राशी का क्रमांक होता है -५), दुसरे प्रश्न की संख्या १९का शेष ७ था, तो बनी तुला राशी, तिसरे का शेष ३ प्रश्न याने प्रश्नलग्न था मिथुन, चौथे प्रश्न की शेष संख्या ९ थी तो लग्न बना धनुष)।
महर्षी अत्री से विदा लेने से पुर्व, मुझमें काव्यशक्ति जागृत हो ऐसे आशीर्वाद मांगा तब उन्होंने कहा, प्रार्थना आत्मा से संबंधित है। उसे उचित गुरुही प्रदान करेंगे
शब्दांकन - शशिकांत ओक
दि ३ जनवरी २०११.










Maharishi Atri and Mother Anasooya in the Gurukulam guiding the soul seeking Jeeva Naadi
Maharishi Atri sitting under the sacred peepal tree is guiding the soul. Besides him Mother Anasooya is busy in making a flower garland, listening to Maharishi's words of wisdom for the questions asked by the soul. The couple of deer connotes, the one who has a query, listens to the answers faithfully; and the other casually witnesses, listens with a fickle mind. Similarly, one of the deer is listening with utmost faith and another is seen being a little distracted. The cow is attentive with compassion in her eyes. The water tank denotes the Godly knowledge and the water pot indicates that Maharishi's divination is with the consent and inspiration from the God.
Some take pride and happiness in interrupting any good deeds and harassing good doers. Those are represented as rabbits, looking at the fruits, indicating greed and personal contentment. Lord Lord Shiva and Mother-Shakti watchfully witnessing all these happenings in form of couple of parrots.
In the serene and peaceful ambiance of Gurukulam, some of the disciples of Maharishi are busy writing Naadi Granthas, while some other disciples are seen arranging the Naadi Granthas systematically. Lord Dattatreya bestowing his choicest blessings to the self proclaimed volunteers of Naadi Granthas, like us.
Idea - Shashikant Oak.   Worded by Haiyo Haiyaiyo.   Painting by Hiremath.
Sponsor by - G. Eashwaran, Naadi center, Dange Chauk, Thergaon.  
Peroiod of painting- Jan to Jun 2010.

महर्षी अत्री व माता अनसूया गुरुकुलामध्ये जीवनाडीद्वारे मार्गदर्शन करतना
सोबतच्या चित्रामध्ये पिंपळाच्या पारावर विराजमान होऊन महर्षी अत्री जातकांना मार्गदर्शन असतांना दिसत आहेत... तिथेच त्यांच्या शेजारी माता अनसूया फुलांचा हार बांधताना जातकाच्या प्रश्नाच्या अनुषंगाने महर्षींचे मार्गदर्शन ऐकत आहेत. गुरुकुलातील रम्य आणि शांत वातावरणात मागील बाजूस महर्षींचे शिष्यगणांपैकी काहीजण नाडिग्रंथलेखनाचे कार्य करत आहेत, तर इतर काही शिष्य ग्रंथांची वर्गवारी करून रचून ठेवण्याचे कार्य करत आहेत. चित्रातील हरिणांची जोडी जातकांची धारणा दर्शवते. बहुधा ज्यास प्रश्न पडलेला असतो, तो प्रश्नाचे उत्तर श्रद्धापूर्वक ऐकतो, आणि त्यासोबत आलेला साक्षीदार विचलित मनाने ऐकत असतो. त्याचप्रमाणे इथे एक हरिण श्रद्धापुर्वक ऐकतेय तर दुसरे विचारात पडलेय. ती गोमाता लक्ष देऊन पहातेय! ईश्वरी ज्ञानाचा साठा पाण्याच्या हौदाच्या रूपाने दर्शवलाय, तर महर्षींचे मार्गदर्शन हे ईश्वरी प्रेरणेनेच असल्याचे दर्शवण्यासाठी ज्ञानरूपी पाण्याने भरलेला कमंडलू दिसतोय. शुभकार्यामध्ये विघ्न आणण्यात संतोष मानणारे सशांच्या रूपाने दिसत आहेत. त्या सशाचे लक्ष समोर ठेवलेल्या केळ्याकडे (स्वत:च्या तृप्तीकडे) आहे, तर "याद राख, शुभकार्यात विघ्न आणशील तर" असे दर्शवणारा एक करदंड सशांमध्ये आणि केळ्यांमध्ये ठेवला आहे.
कुठलेही शुभकार्य ईश्वराच्या आशीर्वादाशिवाय शक्य नाहीच - झाडावर बसून हे सारे बघणारे राघू-मैना म्हणजे शिव-शक्ती, आणि श्री दत्तात्रेय नाडीग्रंथजागृती करणाऱ्या आम्ह स्वयंसेवकांना संपूर्ण आशीर्वाद देत आहेत.
संकल्पना – शशिकांत ओक.         शब्दांकन – हैयोहैयैयो...             चित्र कार – हिरेमठ.
सौजन्य – जी.ईश्वरन. थेरगाव नाडीग्रंथ केंद्र, डांगेचौक, चित्रनिर्मिती काल – जाने ते जून २०१०

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